Monday 2 January 2017

Market with lots of Colours


हर व्यक्ति हर चीज न उगा सकता है और न ही बना सकता है। अपनी जरूरत का सामान खरीदने के लिए उसे बाजार का रूख करना ही पड़ता है। बाजार वह जगह होती है जहां लोग सामान बेचते और खरीदते हैं। बाजार की संकल्पना बहुत पुरानी है। बाजार उस समय भी हुआ करते थे जब कोई करंसी नहीं थी। उस समय लोग सामान के बदले सामानों का आदन-प्रदान किया करते थे। अब बाजार का स्वरूप उस समय की तरह नहीं रहा। उसका स्वरूप अब विशाल से विशालतम होता जा रहा है। एक ही छत के नीचे सभी चीजे मुहैया कराई जा रही है। 



इन तस्वीरों में अरूणाचल प्रदेश के गांव का एक बाजार है। शहरी बाजार की तरह नहीं है। क्योंकि इन तस्वीरों में स्थानीय चीजे ज्यादा दिख रही हैं। इन तस्वीरों की सबसे बड़ी खसियत है कि यह बहुत ही रंगीन हैं। सब्जियां या फलों का रंग नयनप्रिय है और बाजार में ज्यादा भीड़ भी नहीं है। पता नहीं भीड़ वाली सकारात्मक है या नकारात्मक। क्योंकि बाजार में जितनी ज्यादा भीड़ हो वह उतना अच्छा बाजार माना जाता है। 


इन तस्वीरों में कई ऐसी चीजें भी दिख रही हैं जो आमतौर पर अन्य बाजारों में नहीं दिखाई देती। निश्चित रूप से वह स्थानीय चीजे हैं। लेकिन कुछ तस्वीरों में पेप्सी और कोक की बोतलें दिखाई दे रही हैं। यह ऐसा ब्रांड है जो दुनिया के हर कोने में दिखाई देता है। इसने सभी देशों के सभी हिस्सों में सेंध मार रखी है। बाजार कोई भी हो यह ब्रांड दिखाई देता है।