Wednesday 16 November 2016

Rest and See the Awesome View

Rest in peace


Garden on top with peaceful place


प्रकृति का साथ किसे अच्छा नहीं लगता। हरे-हरे पेड़, नीला आसमान और उसके नीचे आराम से बैठना या लेटना। इनसान कितना भी राजसी ठाठ-बाठ में रहे, कितनी भी महंगी गाड़ियों में घूमें। लेकिन प्रकृति की गोद में उसे एक अलग तरह का ही सुकून मिलता है। यहां पहली और दूसरी तस्वीर में मानव निर्मित प्रकृति के साथ झूले लगाए गए हैं। बचपन में गांव में बच्चे पेड़ों पर झूले बांधकर खेला करते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम ज्यादा आधुनिक होते जा रहे हैं उनसे नाता टूटता जा रहा है। आधुनिकता की दौड़ में साधारण की चीजों का मजा लेना भी भूल गए हैं। अब वही साधारण की चीजों के लिए हमें पैसे देना पड़ता है। अब झोपड़ीनुमा होटल बन रहे हैं। हम उन्हीं झोपड़ियों से होते हुए ही तो कंक्रीट की महलों में आए हैं। अब वापस उसी ओर लौट रहे हैं। यह झूले कुछ उसी तरह का अहसास दे रहे हैं। यह किसी हिल स्टेशन के किसी होटल का बागीचा है जिसमें झूले लगाए गए हैं। वहां जो भी ठहरने आता है वह इस झूले का आनंद ले सकता है। शहरों में अब तो पेड़ ही नहीं बचे और बचे हैं उस पर आप झूला टांग कर आसाम नहीं फरमा सकते। इसकी कई वजहें हो सकती है।





Waiting for Someone


तीसरी तस्वीर है खाली लोहे की कुर्सी और टेबल की। जो निश्चित रूप से होटल के छत पर लगी हुई हैं। यहां पर सैलानी शाम की चाय का मजा उठाते होंगे। इसमें दूर-दूर तक फैले पहाड़ नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर में अजीब सी शांती है। इसमें टीलों की चोटियों पर मकान बने जा रहे हैं। इसका एक पक्ष यह हो सकता है कि हमने प्रकृति में कहां तक सेंध लगा दी है और दूसरी की हम शांति और सुकून की चाह में कहां तक पहुंच गए हैं। छत पर पड़ी कुर्सी और टेबल एकदम खाली है। जैसे उन्हें किसी का इंतजार हो जो इस पर विराजमान होकर सुकून के कुछ पल बिताए। कोई गीतकार कुछ गुनगुनाए, कोई शायर कुछ अल्फ़ाज़ कहे, कुछ चाय की चुस्कियां, किसी बच्चे की हंसी, किसी जोड़े के प्यार के कुछ पल, किसी के अस्सीवें बसंत की कोई शाम।