Thursday 26 January 2017

Awesome View

Unseen View

Monday 9 January 2017

People working


Sunday 8 January 2017

Awesome View


Monday 2 January 2017

Market with lots of Colours


हर व्यक्ति हर चीज न उगा सकता है और न ही बना सकता है। अपनी जरूरत का सामान खरीदने के लिए उसे बाजार का रूख करना ही पड़ता है। बाजार वह जगह होती है जहां लोग सामान बेचते और खरीदते हैं। बाजार की संकल्पना बहुत पुरानी है। बाजार उस समय भी हुआ करते थे जब कोई करंसी नहीं थी। उस समय लोग सामान के बदले सामानों का आदन-प्रदान किया करते थे। अब बाजार का स्वरूप उस समय की तरह नहीं रहा। उसका स्वरूप अब विशाल से विशालतम होता जा रहा है। एक ही छत के नीचे सभी चीजे मुहैया कराई जा रही है। 



इन तस्वीरों में अरूणाचल प्रदेश के गांव का एक बाजार है। शहरी बाजार की तरह नहीं है। क्योंकि इन तस्वीरों में स्थानीय चीजे ज्यादा दिख रही हैं। इन तस्वीरों की सबसे बड़ी खसियत है कि यह बहुत ही रंगीन हैं। सब्जियां या फलों का रंग नयनप्रिय है और बाजार में ज्यादा भीड़ भी नहीं है। पता नहीं भीड़ वाली सकारात्मक है या नकारात्मक। क्योंकि बाजार में जितनी ज्यादा भीड़ हो वह उतना अच्छा बाजार माना जाता है। 


इन तस्वीरों में कई ऐसी चीजें भी दिख रही हैं जो आमतौर पर अन्य बाजारों में नहीं दिखाई देती। निश्चित रूप से वह स्थानीय चीजे हैं। लेकिन कुछ तस्वीरों में पेप्सी और कोक की बोतलें दिखाई दे रही हैं। यह ऐसा ब्रांड है जो दुनिया के हर कोने में दिखाई देता है। इसने सभी देशों के सभी हिस्सों में सेंध मार रखी है। बाजार कोई भी हो यह ब्रांड दिखाई देता है।

Sunday 1 January 2017

Farmers Reap Rice



इनसान या मनुष्य या किसी भी जीवित प्राणी व पौधे के लिए जीवित रहने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। इसके बिना वह सर्वाइव नहीं कर सकता। ऊर्जा हर किसी को अलग-अलग तरह से मिलती है। मनुष्यों के लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा श्रोत  खाना है। हर देश और उस देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न प्रकार के खाद्य वस्तु मिलती है। भारत में ही हर राज्य के अपने लोकप्रिय खाद्य पदार्थ हैं। 




जहां पंजाब में अधिकर रोटी खाई जाती है वहीं बंगाल में चावल की प्राथमिकता है। मैंने खाद्य पदार्थ पर इतना लंबा वक्तव्य इसलिए दिया क्योंकि इन तस्वीरों में धान की खेती हो रही है जिससे आगे चलकर चावल बनता है। जिन्होंने खेती की होगी उसको इस बात का पता होगा कि गेंहू के मुकाबले चावल को उगाने में ज्यादा मेहनत लगती है। 




पहले धान के बीज को एक छोटे में हिस्से में उगाया जाता है फिर उसे उखाड़कर दूसरे खेत में रोपा जाता है। इन तस्वीरों में धान की कटाई हो रही है। मैं चूंकि बिहार में रहा हूं तो वहां इस तरह कटाई नहीं होती। लेकिन परिस्थिति के मुताबिक ही हर जगह धान की कटाई होती है। इन तस्वीरों से साफ पता चल रहा है कि केवल धान के सिरे को काटकर उसे टोकरी में अलग कर लिया जा रहा है। 






अरुणाचल प्रदेश के इन लोगों की तस्वीरों से साफ पता चलता है कि खेती में कितनी मेहनत लगती है। चूंकि खेत की मिट्टी गीली है तो मेहनत दुगुनी हो जाती है। बावजूद इसके इनके चेहरों में खुशी है फसल के पकने की। जैसे कोई बच्चा पैदा होता है तो उसकी मां को खुशी होती है ठीक उसी तरह जब किसान फसल को काटता है तो उसको भी कुछ वैसा ही अनुभव होता है। क्योंकि किसी भी फसल को बोने से उसे काटने की उसकी काफी देखभाल करनी पड़ती है।