Friday, 18 November 2016

Walking Pace with Nature

So much water in the Pound


Walking Pace with Nature

 प्रकृति का आकर्षण अपने आप में गजब होता है। चाहे वह शांत प्रकृति हो या उसका विकराल रूप हो। हम सभी को प्रकृति का शांत रूप ही पसंद है। जिसके साथ रहकर हम अंदरूनी शांति महसूस करते हैं। शुरुआत की दो तस्वीरों में तालाब के चित्र हैं। तालाब है समुंद्र एक असमानता यह भी है कि जहां समुंद्र का पानी उफनता रहता है वहीं तालाब एकदम शांत रहता है। उसके पानी में ज्यादा हलचल नहीं होती। पहली तस्वीर के ज्यादातर हिस्से में पानी है और दोनों ओर वह अंत में जमीन है। यह किसी हाइवे की तरह नजर आ रहा है। जो सामने बसी बस्ती तक लोगों को ले जाती हो। वहीं दूसरी तस्वीर में पानी हरा नजर आ रहा है। शायद वह वहां के पेड़ों के अक्स है। और तालाब के किनारे सड़क और उसपर चलते वाहन नजर आ रहे हैं। पहली तस्वीर में मैंने तालाब को हाइवे की संज्ञा दी यहां तालाब और हाइवे दोनों साथ-साथ है। यानी प्रकृति और मानव कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं। जब तक कदम साथ है तब तक ठीक जब इसके अनुपात में अंतर बढ़ेगा तो स्थिति में भी परिवर्तन आएगा।

Terraced Fields and City


Town on the Top



यह दोनों तस्वीर पहाड़ी पर बसे शहर की है जिसे आड़ी-टेड़ी सड़क ने मुख्य जमीन से जोड़े रखा है। इसमें सीढ़िनुमा खेत और सीढ़िनुमा ही घर बने जा रहे हैं। दोनों ही तस्वीरों में एक बहुत बड़े जगह को दिखाया गया है। जिससे उसकी खूबसूरती के साथ ही वहां की चुनौतियां भी दिखाई देती हैं। ऐसी जगहों में सड़क आपको हर जगह नहीं ले जा सकती। यहां पगडंडियों की अपनी महत्ता होती है। ऐसी जगहों का असली मजा भी इसी में है कि यहां पैदल घूमा जाए।

Wednesday, 16 November 2016

Rest and See the Awesome View

Rest in peace


Garden on top with peaceful place


प्रकृति का साथ किसे अच्छा नहीं लगता। हरे-हरे पेड़, नीला आसमान और उसके नीचे आराम से बैठना या लेटना। इनसान कितना भी राजसी ठाठ-बाठ में रहे, कितनी भी महंगी गाड़ियों में घूमें। लेकिन प्रकृति की गोद में उसे एक अलग तरह का ही सुकून मिलता है। यहां पहली और दूसरी तस्वीर में मानव निर्मित प्रकृति के साथ झूले लगाए गए हैं। बचपन में गांव में बच्चे पेड़ों पर झूले बांधकर खेला करते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम ज्यादा आधुनिक होते जा रहे हैं उनसे नाता टूटता जा रहा है। आधुनिकता की दौड़ में साधारण की चीजों का मजा लेना भी भूल गए हैं। अब वही साधारण की चीजों के लिए हमें पैसे देना पड़ता है। अब झोपड़ीनुमा होटल बन रहे हैं। हम उन्हीं झोपड़ियों से होते हुए ही तो कंक्रीट की महलों में आए हैं। अब वापस उसी ओर लौट रहे हैं। यह झूले कुछ उसी तरह का अहसास दे रहे हैं। यह किसी हिल स्टेशन के किसी होटल का बागीचा है जिसमें झूले लगाए गए हैं। वहां जो भी ठहरने आता है वह इस झूले का आनंद ले सकता है। शहरों में अब तो पेड़ ही नहीं बचे और बचे हैं उस पर आप झूला टांग कर आसाम नहीं फरमा सकते। इसकी कई वजहें हो सकती है।





Waiting for Someone


तीसरी तस्वीर है खाली लोहे की कुर्सी और टेबल की। जो निश्चित रूप से होटल के छत पर लगी हुई हैं। यहां पर सैलानी शाम की चाय का मजा उठाते होंगे। इसमें दूर-दूर तक फैले पहाड़ नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर में अजीब सी शांती है। इसमें टीलों की चोटियों पर मकान बने जा रहे हैं। इसका एक पक्ष यह हो सकता है कि हमने प्रकृति में कहां तक सेंध लगा दी है और दूसरी की हम शांति और सुकून की चाह में कहां तक पहुंच गए हैं। छत पर पड़ी कुर्सी और टेबल एकदम खाली है। जैसे उन्हें किसी का इंतजार हो जो इस पर विराजमान होकर सुकून के कुछ पल बिताए। कोई गीतकार कुछ गुनगुनाए, कोई शायर कुछ अल्फ़ाज़ कहे, कुछ चाय की चुस्कियां, किसी बच्चे की हंसी, किसी जोड़े के प्यार के कुछ पल, किसी के अस्सीवें बसंत की कोई शाम।